वाला, विपरीत परिस्थितियों में साहस बढ़ाने वाला ही सच्चा मित्र हो सकता है। आचार्य शुक्ल ने सच्चे मित्र को कड़वी दवा की भाँति बताया है, जो कुसंग के ज्वर को दूर कर देती है। हमारे जीवन का मार्ग कुमार्ग न बन जाए, सफलता असफलता न बन जाए और नेकनामी बदनामी न बन जाए, इसके लिए हमें बुरे मित्रों और उनकी संगति से दूर ही रहना चाहिए।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनिए-
(I) प्रत्येक व्यक्ति को किसकी तलाश रहती है?
(क) किसी भी मित्र की ( ख ) हँसमुख व्यक्ति की
( ग) सच्चे मित्र की। (घ) चाटुकारिता की
(ii) सच्चा मित्र विपरीत परिस्थितियों में क्या करता है?
(क) साहस बढ़ाता है (ख) हतोत्साहित करता है
(ग) तटस्थ हो जाता है (घ) हँसता रहता है।
(iii) कुसंग के ज्वर को दूर कौन कर देती है ?
(क) किसी व्यक्ति की सहानुभूति (ख) सच्ची मित्रता
(ग) निष्पक्षता। (घ) हमारी सफलता
(iv) 'मित्रता सदैव सोच-समझकर करनी चाहिए।'-अर्थ की दृष्टि से वाक्य का कौन-सा भेद है?
(क) प्रश्नवाचक (ख) नकारात्मक
(ग) विधानवाचक। (घ) आज्ञार्थक
(v) नेकनामी को बदनामी से बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
(क) किसी मित्र से परामर्श लेनी चाहिए।
(ख) बुरे मित्रों एवं उनकी संगति से दूर रहना चाहिए
(ग) नेकनामी का प्रचार करना चाहिए
(घ) विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखना चाहिए
(i) (ग) सच्चे मित्र की ( ii) (क) साहस बढ़ाता है
(iii) (ख) सच्ची मित्रता (iv) (ग) विधानवाचक
(v) (ख) बुरे मित्रों एवं उनकी संगति से दूर रहना चाहिए।