मंगलवार, 17 नवंबर 2020

APATHIT PADYANSH

 चलें गाँव की ओर, जहाँ पर हरे खेत लहराते,

मेड़ों पर हैं कृषक घूमते, सुख से बिरहा गाते।
गेहूँ, चना, मटर जो सिर पर लेकर भार खड़े हैं,
बीच-बीच में प्रहरी जैसे दिखते वृक्ष अड़े हैं।
चलें गाँव की ओर, झोंपड़े जहाँ झुके धरती में,
तरु के नीचे खेल रहे हैं, बच्चे निज मस्ती में।
कटि पर लिए गगरिया गोरी आती है बलखाती,
देख किसी गुरुजन को सम्मुख सहसा शरमा जाती।
चलें गाँव की ओर उठ रहा जहाँ धुआँ लहराता।
थके कृषक को सॉँझ समय, जो घर की ओर बुलाता।
रूखा-सूखा ही भोजन है, पर वह स्नेह सना है,
इसीलिए तो तोष दे रहा, अमृत तुल्य बना 

 बहुविकल्पीय प्रश्न-
निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनिए-
(i) कवि कैसे गाँव की ओर चलने की बात कह रहे हैं?
(क) जहाँ हरे खेत लहराते हैं।
(ग) जहाँ किसान सुख से बिरहा गाते हैं।
(ख) जहाँ मेड़ों पर कृषक घूमते हैं।
(घ) उपरोक्त सभी
(ii) खेतों के बीच में उगे हुए वृक्ष कैसे प्रतीत होते हैं?
(क) गाते हुए।           (ख) बोझ लेकर खड़े हुए
(ग) प्रहरी के समान।   (घ) झुके हुए से
(iii) 'गगरिया शब्द का अर्थ है-
(क) घाघरा।         (ख) घड़ा
(ग) प्रहरी।           (घ) युवती
(i) 'अमृत तुल्य' कौन-सी वस्तु है?
(क) साँझ का समय। 
(ख) रूखा-सूखा, स्नेह-सना भोजन
(ग) गाँव की हरियाली
(घ) लहराता हुआ धुआँ
(v) इस काव्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है-
(क) गाँव की महिमा    (ख) लहलहाते खेत
(ग) चलें गाँव की ओर  ( घ) घर बुलाते हैं।


उत्तर (i) (घ) उपरोक्त सभी
       (ii) (ग) प्रहरी के समान
       (iii) (ख) घड़ा
       (iv) (ख) रूखा-सूखा, स्नेह-सना भोजन
       (v) (ग) चलें गाँव की ओर