धूल
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प्रश्न १ -
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर लिखें - ५
हमारी देश भक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम
से कम उस पर पैर तो रखे | किसान के
हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सभ्यता
से क्या कहती है ? हम काँच को प्यार करते हैं,
धूल - भरे हीरे में धूल ही दिखाई
देती है, भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये
हीरे अमर हैं और एक दिन
अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे | अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही
प्रमाण दिया है
-“ हीरा वही घन चोट न टूटे |” वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे
का भेद
जानना बाकी न रहेगा | तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को भी माथे से लगाना सीखेंगे |
१- धूल को माथे से
लगाने और उस पर पैर रखने से किसका परिचय मिलाता है?
२- किसके हाथ-पैर,
मुँह पर धूल छाई हुई ?
३- धूल से भरे हुए
हीरे कैसे हीरे हैं?
४- प्रस्तुत पाठ के
लेखक का नाम लिखें |
५- “ हीरा वही घन
चोट न टूटे |” इस पंक्ति में हीरा किसका प्रतीक है?
प्रश्न २- निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर लिखें - १०
१- गोधूलि की बेला से क्या अभिप्राय है?
२- लेखक हमें धूल पर पैर रखने के लिए क्यों कह
रहा है?
३- हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
४ - ग्रामीण व शहरी
सभ्यता में क्या अंतर है?
५- धूल का महत्त्व अपने
शब्दों में लिखें |