सोमवार, 7 मार्च 2016

Gita sar


          
                                 
   

क्यों व्यर्थ की चिंता करते होकिससे व्यर्थ डरते होकौन तुम्हें मार सक्ता हैआत्मा ना पैदा होती है मरती  है।

जो हुआवह अच्छा , जो हो रहा हैवह अच्छा हो रहा हैजो होगावह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप करो। भविष्य की चिन्ता  करो। वर्तमान चल रहा है।


तुम्हारा क्या गयाजो तुम रोते होतुम क्या लाए थेजो तुमने खो दियातुमने क्या पैदा किया थाजो नाश होगया तुम कुछ लेकर आएजो लिया यहीं से लिया। जो दियायहीं पर दिया। जो लियाइसी (भगवानसेलिया। जो दियाइसी को दिया।

खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा हैकल और किसी का थापरसों किसी और  का होगा। तुमइसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते होवही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बनजातेहोदूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेराछोटा-बड़ाअपना-परायामन से मिटा दोफिर सबतुम्हारा हैतुम सबके हो।

 यह शरीर तुम्हारा है तुम शरीर के हो। यह अग्निजलवायुपृथ्वीआकाश से बना है और  इसी में मिलजायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?

तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय,चिन्ताशोक से सर्वदा मुक्त है।

जो कुछ भी तू करता हैउसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंद अनुभव करेगा।