रविवार, 30 जनवरी 2022

दुख का अधिकार - प्रश्नोत्तर

 1. किसी पोशाक देखकर हमें चलता है?

 

उत्तर 

 

किसी की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसके अधिकार और दर्जे का पता चलता है। 

 

2. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई ख़रबूज़े क्यों नही खरीद रहा था?

 

उत्तर

 

ख़रबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई ख़रबूज़े इसलिए नही खरीद रहा था क्योंकि वह मुँह छिपाए सिर को घुटनो पर रख फफक-फफककर रो रही थी। 

 

3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?

 

उत्तर 

 

उस स्त्री को देखकर लेखक लेखक के मन में एक व्यथा सी उठी और वो उसके रोने का कारण जानने का उपाय सोचने लगा। 

 

4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?

 

उत्तर 

 

उस स्त्री के लड़के की मृत्यु खेत में पके खरबूज चुनते समय साँप के काटने से हुई 

 

5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नही देता? 

उत्तर 

 बुढ़िया के परिवार में एकमात्र कमाने वाला बेटा मर गया था। ऐसे में पैसे वापस न मिलने के डर के कारण कोई उसे उधार नही देता। 

लिखित 
(
क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -

1.
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तर
मनुष्य के जीवन में पोशाक मात्र एक शरीर ढकने का साधन नही है बल्कि समाज में उसका दर्जा निश्चित करती है। पोशाक से मनुष्य की हैसियत, पद तथा समाज में उसके स्थान का पता चलता है। पोशाक मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है। जब हम किसी से मिलते हैं, तो पहले उसकी पोशाक से प्रभावित होते हैं तथा उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाते हैं। पोशाक जितनी प्रभावशाली होगी, उतने अधिक लोग प्रभावित होगें।

2.
पोशाक हमारे हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर
पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन तब बन जाती है जब हम अपने से कम दर्ज़े या कम पैसे वाले व्यक्ति के साथ उसके दुख बाँटने की इच्छा रखते हैं। लेकिन उसे छोटा समझकर उससे बात करने में संकोच करते हैं और उसके साथ सहानुभूति तक प्रकट नहीं कर पाते हैं।

 

 

 

 

 


3.
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नही जान पाया?

उत्तर

लेखक की पोशाक रोने का कारण जान पाने की बीच अड़चन थी। वह फुटपाथ पर बैठकर उससे पूछ नही सकता था। इससे उसके प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती। इस वजह से वह उस स्त्री के रोने का कारण नही जान पाया। 

 

4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

 

उत्तर 

 

भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। 

 

5. लड़के के मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?

 

उत्तर 

 

बुढ़िया बहुत गरीब थी। लड़के की मृत्यु पर घर में जो कुछ था सब कुछ खर्च हो गया। लड़के के छोटे-छोटे बच्चे भूख से परेशान थे, बहू को तेज़ बुखार था। ईलाज के लिए भी पैसा नहीं था। इन्हीं सब कारणों से वह दूसरे ही दिन खरबूज़े बेचने चल दी।

6.
बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

उत्तर

लेखक को बुढ़िया के दुःख को देखकर अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि उसके बेटे का भी देहांत हुआ था। वह दोनों के दुखों के तुलना करना चाहता था। दोनों के शोक मानाने का ढंग अलग था। धनी परिवार के होने की वजह से वह उसके पास शोक मनाने को असीमित समय था और बुढ़िया के पास शोक का अधिकार नही था।

(
ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -


1. बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

बाज़ार के लोग खरबूज़ेबेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कह रहे थे। कोई घृणा से थूककर बेहया कह रहा था, कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई कमीनी, कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता, कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला लाला कह रहा था, इनके लिए अगर मरने-जीने का कोई मतलब नही है तो दुसरो का धर्म ईमान क्यों ख़राब कर रही है।


2.
पास पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

उत्तर

पास पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का जवान बेटा सांप के काटने से मर गया है। वह परिवार में एकमात्र कमाने वाला था। उसके घर का सारा सामान बेटे को बचाने में खर्च हो गया। घर में दो पोते भूख से बिलख रहे थे। इसलिए वो खरबूजे बेचने बाजार आई है।

3.
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने क्या- क्या उपाय किए ?

उत्तर

लड़के के मृत्यु होने पर बुढ़िया पागल सी हो गयी। वह जो कर सकती थी उसने किया। वह ओझा को बुला लायी झाड़ना-फूंकना हुआ। नागदेवता की पूजा भी हुई। घर में जितना अनाज था दान दक्षिणा में समाप्त हो गया। परन्तु उसका बेटा बच न सका।

4.
लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाजा कैसे लगाया?

उत्तर

लेखक उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा जिसके पास दु:ख प्रकट करने का अधिकार तथा अवसर दोनों था परन्तु यह बुढ़िया तो इतनी असहाय थी कि वह ठीक से अपने पुत्र की मृत्यु का शोक भी नहीं मना सकती थी।

5.
इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि दु:ख का अधिकार सभी को है। गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्रांत महिला के पास सहूलियतें थीं, समय था। इसलिए वह दु:ख मना सकी परन्तु बुढ़िया गरीब थी, भूख से बिलखते बच्चों के लिए पैसा कमाने के लिए निकलना था। उसके पास न सहूलियतें थीं न समय। वह दु:ख न मना सकी। उसे दु:ख मनाने का अधिकार नहीं था। इसलिए शीर्षक पूरी तरह सार्थक प्रतीत होता है।

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -

1.
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

उत्तर

यहाँ लेखक ने पोशाक की तुलना वायु की लहरों से की है। जिस प्रकार पतंग के कट जाने पर वायु की लहरें उसे कुछ समय के लिए उड़ाती रहती हैं, एकाएक धरती से टकराने नही देतीं ठीक उसी प्रकार किन्हीं ख़ास परिस्थतियों में पोशाक हमें नीचे झुकने से रोकती हैं।

2.
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई,धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

उत्तर

इस वाक्य में गरीबी पर चोट की गयी है। गरीबों को कमाने के लिए रोज घर से निकलना पड़ता है । परन्तु लोग कहते हैं उनके लिए रिश्ते-नाते कोई मायने नही रखते हैं। वे सिर्फ पैसों के गुलाम होते हैं। रोटी कमाना उनके लिए सबसे बड़ी बात होती है।

3.
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए औरदुखी होने का भी एक अधिकार होता है।

उत्तर

शोक करने, गम मनाने के लिए सहूलियत चाहिए। यह व्यंग्य अमीरी पर है क्योंकि अमीर लोगों के पास दुख मनाने का समय और सुविधा दोनों होती हैं। इसके लिए वह दु:ख मनाने का दिखावा भी कर पाता है और उसे अपना अधिकार समझता है। जबकि गरीब विवश होता है। वह रोज़ी रोटी कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास दु:ख मनाने का न तो समय होता है और न ही सुविधा होती है। इसलिए उसे दु:ख का अधिकार भी नहीं होता है।