मंगलवार, 25 जनवरी 2022

भगवान से कैसे मिलें ?

 एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था। एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ। उस रियासत के राजा ने जाकर उस संन्यासी को कहाः स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षों से निरंतर पूछ रहा हूं। कोई उत्तर नहीं मिलता। क्या आप मुझे उत्तर देंगे?


स्वामी ने कहाः निश्चित दूंगा।


वह राजा हंसा, उसने कहा कि इतना निश्चय न दें, इतना आश्वासन न दें, क्योंकि न मालूम कितने संन्यासियों से मैंने पूछा है वही प्रश्न और उत्तर नहीं पाता हूं।


उस संन्यासी ने उस राजा से कहाः नहीं, आज तुम खाली उत्तर नहीं लौटोगे। पूछो।


उस राजा ने कहाः मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं। और पहले ही बता दूं, कृपा करके गीता के श्लोक पढ़ कर समझाने की कोशिश मत करना, वह मैंने काफी सुन लिया है। उपनिषद और वेदों की बातें सुनने की भी मेरी कोई इच्छा नहीं है, वे मैंने सब पढ़ लिए हैं। ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना। मैं तो सीधा मिलना चाहता हूं। मिलवा सकते हों तो कह दें, हां; न मिलवा सकते हों तो कह दें, न; मैं वापस लौट जाऊं।


यही उसने न मालूम कितने संन्यासियों से पूछा था। हमेशा संन्यासी चौंक गए होंगे, लेकिन इस बार उस राजा को ही चौंक जाना पड़ा। उस संन्यासी ने कहाः अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर?


इसकी आशा भी न थी, अपेक्षा भी न थी। राजा थोड़ा चिंतित हुआ, सोचा उसने, शायद मेरी बात समझी नहीं गई। न मालूम यह कोई ईश्वर नाम वाले आदमी से मिलाने की बात तो नहीं समझ रहे? तो उसने कहाः माफ करिए, शायद आप समझे नहीं। मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की नहीं, जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो?


उस संन्यासी ने कहाः महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है। मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं। अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें।


उस राजा ने भी कभी सोचा नहीं था कि कोई आदमी इतनी जल्दी मिलवाने को तैयार हो जाएगा। ऐसे आपको भी कोई मिल जाए और एकदम से कह दे कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर बाद? तो आप कहेंगेः थोड़ा मैं घर पूछ आऊं, पत्नी से, बच्चों से। इतनी जल्दी भी क्या! पता नहीं मिलने का क्या परिणाम हो। वह राजा भी थोड़ा परेशान हुआ।


संन्यासी ने कहाः इतना परेशान क्यों होते हैं? जब बीस साल से मिलने को उत्सुक थे और आज वक्त आ गया तो मिल लो।


राजा ने हिम्मत की, उसने कहाः अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं, मिला दीजिए।


संन्यासी ने कहाः कृपा करो, इस छोटे से कागज पर अपना पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं।


राजा ने कहाः यह तो ठीक ही है। मुझसे भी कोई मिलता है तो पता पूछ लेता हूं–नाम, ठिकाना, परिचय। राजा ने लिखा–अपना नाम, अपना महल, अपना परिचय, अपनी उपाधियां और उसे दीं।


वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बातें मुझे बिल्कुल झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं।


वह राजा बोलाः मैं पहले ही शक में पड़ गया था कि आप आदमी कुछ गड़बड़ हो। भगवान से मिलवाने की बात इतनी आसान! कल्पना में भी नहीं उठती थी। तभी मैं समझ गया था कि या तो यह आदमी पागल है, और या फिर मैं पागल हूं। यह हो क्या रहा है, यहां भगवान से मिलवाना हुआ जा रहा है! यह मेरा ही परिचय है। मैं हूं राजा इस राज्य का। यह मेरा नाम है।


उस संन्यासी ने कहाः मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे? तुम्हारा अ नाम से ब कर दें तो फर्क पड़ जाएगा कुछ? तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा?


उस राजा ने कहाः नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा? नाम नाम है, मैं मैं हूं।

तो संन्यासी ने कहाः एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं। आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे?


उस राजा ने कहाः नहीं, राज्य चला जाएगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा? मैं तो जो हूं हूं। राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही होऊंगा। न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगी धन-संपत्ति, लेकिन मैं? मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं।


तो संन्यासी ने कहाः तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं। तुम्हारी उम्र कितनी है?


उसने कहाः चालीस वर्ष।


संन्यासी ने कहाः तो पचास वर्ष के होकर तुम दूसरे हो जाओगे? बीस वर्ष के जब थे तब दूसरे थे? बच्चे जब थे तब दूसरे थे? जवान जब हो गए, दूसरे हो गए? बूढ़े जब हो जाओगे तो दूसरे?


उस राजा ने कहाः नहीं। उम्र बदलती है, शरीर बदलता है, लेकिन मैं? मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है, कल भी रहेगा। मैं तो एक सातत्य हूं। मैं तो एक कंटीन्यूटी हूं। मेरे भीतर तो एक सतत कोई है, चेतना, जो कुछ भी कहें, जीवन कहें, वह हूं मैं।


उस संन्यासी ने कहाः फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा। फिर तुम कौन हो? उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास, नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ। यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है।


राजा बोलाः तब तो बड़ी कठिनाई हो गई। उसे तो मैं भी नहीं जानता फिर! जो मैं हूं, उसे तो मैं भी नहीं जानता! इन्हीं को मैं जानता हूं मेरा होना।


उस संन्यासी ने कहाः फिर बड़ी कठिनाई हो गई, क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं, बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है, तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलाना चाहता है? तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो। और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने। क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है।