शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

Kabir ki sakhiyan path par aadharit abhyas kary

 

                 कबीर की साखियाँ

                            शब्दार्थ

ज्ञान - जानकारी

म्यान - तलवार रखने का कोषागार

गाली - अपशब्द

कर - हाथ

दहुँ - दस

दिसि - दिशा

सुमिरन - स्मरण , ईश्वर के नाम का जप

दुहेली - कष्ट साध्य

बैरी - दुश्मन

आपा- घमंड

                               विलोम शब्द

ज्ञान - अज्ञान

शीतल - उष्ण

बैरी - सखा

 

                                पर्यायवाची शब्द

आपा - अभिमान, मद

जीभ - जिह्वा, रसना

तलवार- खड्ग , कृपाण

दया -कृपा अनुकंपा

 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए

प्रश्न १ - कबीर की साखियों  के संग्रहकर्ता कौन है ?

 उत्तर - वियोगी हरि

प्रश्न २ - कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है ?

उत्तर - कबीर के दोहों को साखी इसलिए  कहा जाता है क्योंकि साखी  का अर्थ होता है साक्षी | अर्थात साक्षात्कार करके कही गई बात | कबीर ने अपने दोहों में वहीँ लिखा है जो उन्होंने अपनी आँखों से देखा था या अपने जीवन में अनुभव किया था | अतः उनके दोहों को साखी कहा जाता है |

प्रश्न ३ - किस व्यक्ति पर सभी लोग दया करते हैं ?

उत्तर - जो व्यक्ति अपना घमंड त्याग देता है उस पर सभी दया करते हैं |

 

प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए |

प्रश्न १ - तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं उक्त उदाहरण से कबीर दास जी क्या कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीजिए |

उत्तर- तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं उक्त उदाहरण से कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि हमें मुख्य रुप से उस वस्तु की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए या कीमत लगानी चाहिए जिसका कोई महत्त्व होता है| जिस प्रकार तलवार के समक्ष म्यान का कोई महत्व नहीं होता क्योंकि जब तलवार खरीदी जाती है तो उसकी धार देखी जाती है न कि म्यान ठीक वैसे ही सज्जनों के ज्ञान की महत्ता होती है उनके जाति कि नहीं | उनके जाति को जानने की इच्छा करना व्यर्थ है अर्थात मनुष्य का भला ज्ञान पूर्ण बातों से होता है जाति संबंधी बातों से नहीं |

प्रश्न २ - पाठ की तीसरी साखी जिसकी एक पंक्ति है मनुआँ तो दहूँ दिसि फिरै  यह तो सुमिरन नाहिं के द्वारा कबीर दास जी क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर- 'मनुआँ तो दहूँ दिसि फिरै यह तो सुमिरन नाहिं' के द्वारा कबीर जी ने आडंबर पूर्ण अर्थात दिखावे वाली भक्ति करने वालों पर करारा प्रहार किया है कवि  का कहना है कि यदि जप करते समय हमारा मन दसों दिशाओं में घूम रहा हो अर्थात मन भक्ति में रहने के बजाए इधर-उधर भटक रहा हो और बेकार की बातें सोच रहा हो तो ऐसे स्मरण और भक्ति का कोई लाभ नहीं होता है| अतः ईश्वर की सच्ची भक्ति करने के लिए मन का एकाग्र होना अति आवश्यक है अतः भक्ति अथवा जप मन से करें |

प्रश्न ३ - कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं ? पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए |

उत्तर- कबीर घास की निंदा करने से मना करते हैं क्योंकि भले ही पैरों तले रौंदी जाने वाली घास निर्बल होती है लेकिन यदि उसका कोई एक तिनका आँखों में पड़ जाए तो वह अत्यधिक कष्टकारी होता है | कवि  के कहने का तात्पर्य है कि किसी मनुष्य को कभी छोटा या कमजोर नहीं समझना चाहिए शक्ति पाकर वह भी कष्ट पहुँचा  सकता है | अत: अपने से कमजोर का भी अपमान नहीं करना चाहिए |