रविवार, 17 अक्तूबर 2021

टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया कभी नहीं

 टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया कभी नहीं


यह रोग बालक युवा, प्रौढ़ - सभी को होता है किंतु बालकों में विशेष रूप से पाया जाता है । जिन बालकों की कफ - प्रकृति होती है, उनमें यह रोग देखने में आता है । गला कफ का स्थान होता है । बच्चों को मीठे पदार्थ और फल ज्यादा खिलाने से , बच्चों के अधिक सोने से (विशेषकर दिन में ) उनके गले में कफ एकत्रित होकर गलतुण्डिका शोथ (टॉन्सिल की सूजन ) रोग होते हो जाता है । इससे गले में खांसी , खुजली एवं दर्द के साथ - साथ सर्दी एवं ज्वर रहता है , जिससे बालकों को खाने - पीने में व नींद में तकलीफ होती है 

बार-बार गलतुण्डिका शोथ होने से शल्य चिकित्सक (सर्जन ) तुरंत शल्यक्रिया करने की सलाह देते हैं । अगर यह औषधि से मिटे तो शल्यक्रिया की मुसीबत मोल नहीं लेना  चाहिए क्योंकि शल्यक्रिया से गलतुण्डिका शोथ दूर होता है , लेकिन इसके कारण दूर नहीं होते । उसके कारण के दूर नहीं होने से छोटी-मोटी तकलीफे  मिटती नहीं , बल्कि बढ़ती रहती है।                         40 वर्ष पहले एक विख्यात डॉक्टर ने ' रीडर्स डाइजेस्ट ' में एक लेख लिखा था जिसमें गलतुण्डिका शोथ की शल्यक्रिया करने को मना किया था ।

 बालकों को गलतुण्डिक शोथ की शल्यक्रिया करवाना - यह मां - बाप के लिए महापाप है क्योंकि ऐसा करने से बालको की जीवनशक्ति का ह्रस होता है ।

निसर्गोपचारक श्री धर्मचंद्र सारावागी  ने लिखा है : मैंने टॉन्सिल्स के सैकड़ों रोगियों को बिना शल्यक्रिया के ठीक होते देखा है ।

 कुछ वर्ष पहले इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के पुरुषों ने अनुभव किया कि टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया  से पुरुषत्व में कमी आ जाती है और स्त्रीत्व  के कुछ लक्षण में उभरने लगते हैं । इटालियन कान्सोलेन्ट , मुंबई से प्रकाशित ' ' ' 'इटालियन कल्चर' नामक पत्रिका के अंक नं. 1, 2, 3 (सन 1955) में भी लिखा था : 'बचपन में टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया करानेवाले में पुरुषत्व में कमी आ जाती है । बाद में डॉक्टर नोसेंन्ट और गाइडो किलोरोली ने1973 में एक कमेटी की स्थापना कर इस पर गहन शोधकार्य किया । 10 विद्वानों ने ग्रेट ब्रिटेन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के लाखों पुरुषों  पर परीक्षण करके उपयुक्त परिणाम पाया तथा इस खतरे को लोगों के सामने रखा ।

शोध का परिणाम जब लोगों के सामने जानने को मिला तो उन्हें आश्चर्य हुआ ! टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया से सदा थकान महसूस होती है तथा पुरुषत्व में कमी आने के कारण जातीय सुख में भी कमी हो जाती है और बार-बार बीमारी होती है । जिन - जिन जवानों के टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया  हुई थी ,वह बंदूक चलाने में कमजोर थे ,ऐसा युद्ध के समय जानने में 

आया ।

 जिन बालकों के टॉन्सिल्स बढें हो  ऐसे बालकों को बर्फ का गोला , कुल्फी , आइसक्रीम , बर्फ का पानी , फ्रिज का पानी , चीनी , गुड़ ,दही , केला , टमाटर , उड़द , ठंडा पानी , खट्टे - मीठे पदार्थ , फल , मिठाई , पिपरमिंट , बिस्कुट , चॉकलेट ये सब चीजें खाने को ना दे । जो आहार ठंडा , चिकना , भारी , मीठा , खट्टा और बासी हो , वह उन्हें न दें  । 

दूध भी थोड़ा - सा और वह भी हल्दी डालकर दे । पानी उबाला हुआ पिलायें ।


 उपचार :


1. टॉन्सिल्स के उपचार के लिए हल्दी सर्वश्रेष्ठ औषधि है । इसका ताजा चूर्ण टॉन्सिल्स पर दबायें , गरम पानी से कुल्ले करवायें और गले के बाहरी  भाग पर इसका लेप करें तथा इसका आधा-आधा ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर बार-बार चढ़ाते रहें ।

2 . दालचीनी के आधे ग्राम से 2 ग्राम  महीन पाउडर को 20 से 30 ग्राम शहद में मिलाकर चटायें ।

3  . टॉन्सिल्स के रोगी को अगर कब्ज हो तो उसे हरड़ दे । मूलहठी चबाने को दें । 8 से 20 गोली खदिरादवटी या यष्टिमधु  घनवटी या लवंगादिवटी चबाने को दें ।

4 : कांचनार गूगल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चटायें ।

5 कफकेतु रस या त्रिभुवन कीर्तिरस या लक्ष्मी विलास रस (नारदीय) एक से दो गोली देवें ।

6 . आधे से दो चम्मच अदरक का रस शहद में मिलाकर देवें ।

7 . त्रिफला या रीठा या नमक या फिटकरी के पानी से बार-बार कुल्ले करवायें ।


सावधानी :


गले में मफलर या पट्टी लपेटकर रखनी चाहिए।