शनिवार, 25 जुलाई 2020

Bus ki yatra बस की यात्रा पाठ आधारित प्रश्न एवं उत्तर

 शब्दार्थ 

निमित्त - कारण, साधन 

गोता - डुबकी लगाना 

इत्तफाक - संयोग 

बियाबान -जंगल उजाड़खंड 

अंत्येष्टि - मृतक कर्म 

प्रयाण  - प्रस्थान 

बेताबी- बेचैनी 

पसारे - फैलाए 

इत्मीनान - धैर्यपूर्वक 

एकाएक -अचानक 


                     पर्यायवाची 

सुबह - प्रातः, प्रभात वेला 

झील - सरोवर,सर 

क्रन्तिकारी -क्रांतिकर्ता, इंकलाबी 

उत्सर्ग- बलिदान, त्याग 

दूध- दुग्ध,पय 

                     विलोम 

दुर्लभ - सुलभ

अवज्ञा - आज्ञा 

राजा- रंक 

उम्मीद - नाउम्मीद

विश्वसनीय-अविश्वसनीय 

             अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 

जो पूजा के योग्य हो - पूजनीय 

जो दया के योग्य हो -  दयनीय 

जो बहुत कठिनाई से प्राप्त हो - दुर्लभ 

मृत्यु के बाद किया जाने वाला संस्कार -अंत्येष्टि  

प्रश्न १- प्रस्तुत पाठ के लेखक का नाम क्या है ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के लेखक का नाम हरिशंकर परसाई  है| 

प्रश्न २- प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक ने किस समस्या की ओर संकेत किया है | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक ने सड़क पर चलने वाली ख़राब बसों की समस्या की ओर संकेत किया है | 

प्रश्न ३- लेखक खिड़की से दूर क्यों हों गया ?

उत्तर- खिड़की के टूटे हुए शीशों से चोट न लग जाए इसलिए लेखक खिड़की से दूर हो गया | 


                  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1: लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई ?   

उत्तर: बस के हिस्सेदार को बस की बुरी हालत के बारे में अच्छी तरह से मालूम था। उसे ये पता था कि बस कहीं भी धोखा दे सकती थी। यदि ब्रेक ने धोखा दे दिया तो जान जाने का भी डर था। फिर भी वह हिस्सेदार उसी बस में जाने की हिम्मत कर रहा था। इसलिए लेखक के मन में हिस्सेदार के लिए श्रद्धा जग गई ।

प्रश्न 2: लोगों ने ऐसी सलाह क्यों दी कि समझदार आदमी उस शाम वाली बस से सफर नहीं करते?

उत्तर:  कोई भी आदमी खस्ताहाल बस में तब तक सफर नहीं करेगा जब तक कोई बहुत आपात की स्थिति न हो, या उस रास्ते पर जाने के लिए कोई अन्य साधन नहीं हो। शाम के समय जाने वाली बस की स्थिति बहुत ख़राब थी| वह कभी भी दुर्घटना का शिकार हो सकती थी| अत: लोगों ने उस शाम वाली बस में न जाने की सलाह दी।

 प्रश्न 3: लोगों को ऐसा क्यों लगा जैसे सारी बस इंजन हो और  वे लोग उस इंजन में बैठे हुए हों ?

उत्तर: बस के सारे पेंच ढ़ीले हो गए थे। इसलिए इंजन चलने से पूरी बस ही इंजन की तरह शोर मचा रही थी और काँप भी रही थी। शोर शराबे और बुरी तरह हिलने-डुलने से ऐसा लग रहा था कि वे लोग बस में नहीं बल्कि इंजन में ही बैठे हों।

प्रश्न 4: लेखक को बस के अपने आप चलने की योग्यता के बारे में जानकर आश्चर्य क्यों हुआ ?

उत्तर: अक्सर सुदूर गाँवों के इलाके में पुरानी और जर्जर बसें ही चला करती हैं। उन्हें देखकर किसी बड़े शहर के निवासी को भरोसा ही नहीं होगा कि वे चल भी सकती हैं। बस देखने में एकदम कबाड़ अवस्था में थी | इसलिए लेखक को भी ये जानकर अचम्भा हुआ कि यह बस अपने आप चल पड़ती है और उसे धक्का लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है।

प्रश्न 5: लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?

उत्तर: प्राय: यात्रा करते समय लोग सड़क के किनारे की हरियाली को निहारने में मग्न होते हैं। लेकिन बस की दुर्दशा ने लेखक या उसके दोस्तों पर तो भय का प्रभाव छोड़ दिया था। इसलिए लेखक को ऐसा लग रहा था कि बस कभी भी किसी  पेड़ से टकरा सकती है। अतः लेखक पेड़ों को दुश्मन समझ रहा था ।