शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

Anokhi kahaniya 21

भिखारी

वह बहुत दिनों से बेरोजगार था, उसे एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो सी लग रही थी, बस इसी उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए. आज उसका एक इंटरव्यू था, पर था दूसरे शहर में और जाने के लिए उसकी जेब में सिर्फ दस रूपये थे. उसे कम से कम पांच सौ रुपयों की जरूरत थी. अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो, पड़ोसी की प्रेस मांग के, तैयार कर पहन वह अपनी योग्ताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकला, लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में पसीने से तरबतर वह बस स्टैंड पहुंचा कि शायद कोई पहचान वाला मिल जाए. परन्तु काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा.
उसके मन में घबराहट और बहुत मायूसी थी,
क्या करूंगा...? अब कैसे पहुंचूगा..?
दुःखी मन से वह पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठ गया. उसके पास में ही एक फकीर बैठा था, फकीर के कटोरे में उसकी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे, उसकी नजरे और हालत समझ के वह फकीर बोला
"कुछ मदद कर सकता हूं क्या..?"

वह मुस्कुराता बोला कि, "आप क्या मदद करोगे भाई...!! "

"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो", मुस्कुराता हुआ वह फकीर बोला.

वह तो चौंक गया कि फकीर को कैसे पता चला उसकी जरूरत का, फिर उसने फकीर से कहा "क्यों मदद करना चाहते हो भाई...?"

"शायद आप को जरूरत है" फकीर गंभीरता से बोला.

"हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो." उसने फकीर का ही पक्ष रखते हुए बोला.
इस पर फकीर हँसते हुए बोला "मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमाने के लिए, मैं तो फकीर हूं, मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भूख लगती है, वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस, मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं."
फकीर बहुत सहज था, यह कहते कहते.

वह हैरान था उसने फकीर से पूछ ही लिया "फिर यहां बैठते क्यों हो.. .?"

"आप जैसों की मदद करने" फिर फकीर यह कह कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था.
वह तो फकीर का मुंह ही देखता रह गया, फकीर ने पांच सौ रुपये उसके हाथ पर रख दिए और बोला कि
"जब हो तो लौटा देना."
वह शुक्रिया जताता, वहां से अपने गंतव्य तक पहुंचा, उसका इंटरव्यू हुआ, और सलैक्शन भी.
वह खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं,
मंदिर पहुंचा तो देखा बाहर की सीढ़़ियों पर भीड़ जमा थी, वह घुस कर अंदर पहुंचा और देखा कि वहां तो वही फक;ीर मरा हुआ पड़ा था,
उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी, उसने दूसरों से पूछा कि यह सब कैसे हुआ...??  पता चला "वो किसी बीमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास  दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे."
वह आवाक सा उस मृत फकीर को देख रहा था.
इतने में भीड़ में से कोई बोला, "अच्छा हुआ मर गया, ये भिखारी भी साले बोझ होते है, कोई काम के नही।