पर्वत प्रदेश में पावस स्पर्श भाग-2 हिंदी
सुमित्रानंदन पंत
पृष्ठ संख्या: 28
प्रश्न
अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. पावस
ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर
वर्षा ऋतु में
मौसम बदलता रहता है। तेज़ वर्षा होती है। जल पहाड़ों के नीचे इकट्ठा होता है तो दर्पण जैसा लगता है। पर्वत मालाओं पर
अनगिनत फूल खिल जाते हैं। ऐसा लगता है कि अनेकों नेत्र
खोलकर पर्वत देख रहा है। पर्वतों पर बहते झरने मानो उनका गौरव गान गा रहे हैं। लंबे-लंबे वृक्ष आसमान को निहारते चिंतामग्न दिखाई दे रहे हैं।
अचानक काले काले बादल घिर आते हैं। ऐसा लगता है मानो बादल रुपी पंख लगाकर
पर्वत उड़ना चाहते हैं। कोहरा धुएँ जैसा लगता है।
इंद्र देवता बादलों के यान पर बैठकर नए-नए जादू दिखाना चाहते हैं।
2. 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
उत्तर
मेखलाकार का अर्थ है करघनी के आकार का। यहाँ इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की श्रृंखला के
लिए किया गया है। ये पावस ऋतु में दूर-दूर तक करघनी की आकृति में फैले हुए हैं।
3. 'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके
लिए किया होगा?
उत्तर
'सहस्र दृग-सुमन' कवि का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूलों से है। कवि को फूल पहाड़ों की आँखों के सामान लग रहे हैं इसीलिए कवि ने इस पद का प्रयोग किया है।
4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर
कवि ने तालाब की
समानता दर्पण से की है क्योंकि तालाब भी दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रतिबिम्ब
दिखा रहा है।
5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की और क्यों देख रहे थे और वे किस
बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर
ऊँचे-ऊँचे पर्वत पर उगे वृक्ष आकाश की ओर देखते चिंतामग्न
प्रतीत हो रहे हैं। जैसे वे आसमान की ऊचाइयों को छूना
चाहते हैं। इससे मानवीय भावनाओं को बताया गया है कि मनुष्य सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में रखता है।
6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?
उत्तर
वर्षा की भयानकता
और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते हैं।
7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर
झरने पर्वतों की
गाथा का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1. है टूट
पड़ा भू पर अंबर।
उत्तर
सुमित्रानंदन पंत
जी ने इस पंक्ति में पर्वत प्रदेश के मूसलाधार वर्षा का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में प्रकृति की
छटा निराली हो जाती है। कभी-कभी इतनी धुआँधार वर्षा होती है मानो आकाश टूट पड़ेगा।
2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
था
इंद्र खेलता इंद्रजाल।
उत्तर
कभी गहरे बादल, कभी तेज़ वर्षा और तालाबों से उठता धुआँ − यहाँ वर्षा ऋतु में पल-पल प्रकृति वेश बदल जाता है। यह सब दृश्य देखकर ऐसा
प्रतीत होता है कि जैसे बादलों के विमान में विराजमान
राजा इन्द्र विभिन्न प्रकार के जादुई खेल-खेल रहे हों।
3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं
से तरुवर
हैं
झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर
इन पंक्तियों का
भाव यह है कि पर्वत पर उगे विशाल वृक्ष ऐसे लगते हैं मानो इनके हृदय में अनेकों महत्वकांक्षाएँ हैं और ये चिंतातुर
आसमान को देख रहे हैं।
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कविता
का सौंदर्य
1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया
है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत कविता
में जगह-जगह पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है; जैसे − पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की तरह प्रस्तुत किया गया है।
"उच्चाकांक्षाओं से
तरूवर
हैं झाँक रहे नीरव
नभ पर"
इन पंक्तियों में
तरूवर के झाँकने में मानवीकरण अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो।
2. आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से
किस पर निर्भर करता है −
(क) अनेकशब्दों की आवृति पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
उत्तर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी भाषा पर निर्भर
करता है। कवि ने कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है।
3. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया
है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
कवि ने चित्रात्मक
शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन
स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है-
1. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र
दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है
बार-बार
नीचे जल में निज
महाकार
जिसके चरणों में
पला ताल
दर्पण फैला है
विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से
तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव
नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।