(एक #महान_प्रेरक प्रसंग)
घटना कोई 15 साल पुरानी है; जब हम तकरीबन 15 शिष्य गण गुरुदेव जी के साथ ट्रेन से गुजरात जा रहे थे। जिनमें पूज्य संत श्री धर्मेंद्र साहेब जी और पूज्य संत श्री गुरुभूषण साहेब जी भी शामिल थे।
गुरुदेव जी अक्सर नीचे शैया पर ही रहना और यात्रा करना पसंद करते थे; बाकी उनके ऊपर, दाएं-बाएं हम अलग-अलग सीटों पर यात्रा कर रहे थे।
आमतौर पर हम सब सवेरे 4:00 बजे जग ही जाते हैेैं चाहे आश्रम में हों, भक्तजनों के घरों में हों या ट्रेन में हों। भोर में उठकर उषापान के पश्चात नित्य-क्रिया की बारी आती है तो हमारे साथी अलग-अलग शौचालय में चले गए।
थोड़ी देर बाद बेड न्यूज़ आई कि डिब्बे में आगे की तरफ लेफ्ट हैंड वाला शौचालय काफी गंदा है और यह बात एक दूसरे को बताने लगे कि वहां भूलकर ना जाएं; भले ही दूसरे डिब्बे में चले जाएं।
शायद यह बात गुरुदेव जी के कान तक नहीं पहुंची थी और वे कुछ देर पश्चात नित्य-क्रिया के लिए गए और निवृत्त होकर अपनी सीट पर ध्यान में बैठ गए।
फिर अचानक एक ब्रेकिंग न्यूज़ आई और साथियों में कानाफूसी शुरू हुई कि जो शौचालय काफी गंदा था वह एकदम साफ हो गया है और आश्चर्य भी हुआ कि अभी कोई स्टेशन भी नहीं आया, जहां गाड़ी रुकी हो और इतनी सुबह कौन साफ कर कर चला गया....! सब एक दूसरे के चेहरे के क्वेश्चन मार्क को रीड करने की कोशिश कर रहे थे।
बाद में धीरे से जब न्यूज़ का पोस्टमार्टम हुआ तब खुलासा हुआ कि गुरुदेव जी उसी गंदे टॉयलेट में गए और कल के बासी पड़े अखबार से उन्होंने पहले टॉयलेट साफ किया और उसी में निवृत्त हुए।
अब हम लोगों को काटो तो खून नहीं। ठीक से गुरुदेव जी से नज़र भी नहीं मिला पा रहे थे क्योंकि जिस काम को हमें करना चाहिए था, वो काम गुरूजी कर गए थे।
गुरुदेव जी कथनी कहकर ही उपदेश नहीं करते थे बल्कि करनी कर उपदेश देते थे और विशुद्ध रहनी में रहा करते थे।
सद्गुरु कबीर साहेब कहते हैं कि...
"करनी करे सो पूत हमारा,
कथनी कथे सो नाती।
रहनी रहे सो गुरु हमारा,
हम रहनी के साथी।।"
कबीरपंथ ही नहीं अध्यात्म जगत के ऐसे महान मसीहा सद्गुरु अभिलाष साहेब जी को लख-लख साहेब बंदगी!
-दास यतींद्र
आश्रम नागपुर-६
@७९७४६६४३६५